Fiza Tanvi

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मेरे बाबा

घर छोड़ दिया गलीया भुला दी मैंने. 

अपने ससुराल की हर रीत अपना ली मैंने. 

डोली लेकर बेटी लेने आये थे. 

मेरे बाबा की चौखट पर. 

एक वक़्त का खाना नाम खिला सके. 

मेरे बाबा को अपनी चौखट पर. 

कोई पूछे तो मुझसे मेरे दर्द का फ़साना. 

चीख निकल ना जाये मेरी ये कहने मे. 

मुझे यही हैं जीवन बिताना. 

बुलाती हू अपने दर पे अपने बाबा को. 

तो कहता है ज़माना. 

ससुराल हैं बेटी का ज़रा वक़्त से जाना. 

पतंग हैं अगर बेटी तो डोर परायी क्यो हैं. 

कोई बताये मुझे. 

ज़माने ने ये रीत बनाई क्यो हैं. 

बड़ा प्यारा था वो घर बचपन का. 

जहा बारिश की बूंदे आती थी. 

छोटी छोटी मींढेरे थी उसकी. 

छोटे से घर मे. 

मै अपने हाथों से बड़े एहतराम से. 

अपने बाबा को खाना खिलाती थी. 

चहक उठती थी हर शाख मेरे बचपन क घर की 

मेरे बाबा की आमद पर. 

कोई ला दे मुझे वो मेरा घर फिर से. 

मेरी ख़ुशामद पर... 

     नाम..... फ़िज़ा तनवी

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1 Comments

🤫

20-Sep-2021 02:48 PM

👌👌

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